राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की पुण्य तिथि पर गाजीपुर में कार्यक्रम
सहजानंद स्मृति न्यास के तत्वावधान में कार्यक्रम में कवि सम्मेलन का आयोजन ...दिनकर को दी गई श्रद्धांजलि

गाजीपुर _उत्तर प्रदेश
आज स्वामी सहजानंद सरस्वती स्मृति न्यास गाजीपुर के तत्वावधान में ओज और राष्ट्र भक्ति के कवि, राजनीतिज्ञ, शिक्षाविद रामधारी सिंह दिनकरजिन्हें उनके उल्लेखनीय साहित्य सेवा के लिए ज्ञानपीठ, पद्म विभूषण सहित विभिन्न साहित्यिक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है की ५१वीं पुण्यतिथि के अवसर पर एक कवि सम्मेलन एवं श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ गायत्री मंत्र के समवेत सस्वर वाचन से हुआ। संस्थापक न्यासी एवं पूर्व सचिव न्यासी श्री मारुति कुमार राय एडवोकेट ने उपस्थित जन समूह से न्यास के गठन एवं उद्देश्यों से परिचित कराया एवं कार्यक्रम के विषय एवं उद्देश्य पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन में शामिल कवियों ने अपनी रचनाओं से उपस्थित जन समूह को भावविभोर कर दिया। कवि सम्मेलन का शुभारंभ कवयित्री शालिनी श्रीवास्तव ने सरस्वती बंदना से किया फिर वीर रस के नवोदित कवि मुकेश कुशवाहा ने अपनी ओजस्वी कविता से वाहवाही अर्जित किया.. कवि गोपाल गौरव ने अपनी गजल से लोगों को तालिया बजाने पर मजबूर किया… वहीं कवयित्री पूजा राय ने अपनी सामयिक कविता से लोगों को गंभीर चिंतन करने के लिए मजबूर किया। दिनेश चंद्र शर्मा जी ने अपनी ओजस्वी कविता से लोगों में जान फूंक दिया तो कवि सम्मेलन का संचालन कर रहे माधव कृष्ण ने अपनी सामयिक कविता एक पत्थर फेंक का वाचन कर सभी श्रोताओं को तालिया बजाने पर मजबूर कर दिया । साहित्य जगत के सशक्त हस्ताक्षर वरिष्ठ कवि कामेश्वर द्विवेदी ने अपने गीत से समा बांधा। इस अवसर पर क्षितिज श्रीवास्तव ने अपनी स्वरचित कविता जो किसान स्वाभिमान पर थी प्रस्तुत किया साथ ही कुमार विश्वास की राष्ट्र भक्ति पर कविता का वाचन भी किया। सेवा निवृत्त शिक्षक श्री निराला राय और श्री श्रीकांत पाण्डेय , श्री महेश चन्द्र लाल और श्रीमति माया सिंह ने अपने शब्दों से रामधारी सिंह दिनकर जी को श्रद्धांजलि अर्पित किया। कार्यक्रम में श्री रामनाथ ठाकुर, श्री शशिधर राय, श्री रास बिहारी राय, श्री अरुणकुमार राय, श्री विजय कुमार राय, श्री दिनेश कुमार सिंह, श्री राधेश्याम ओझा श्री विनोद कुमार राय श्री निखिल राय आदि अनेक गणमान्य लोग मौजूद रहे कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री ओमनारायण प्रधान और संचालन श्री मारुति कुमार राय एडवोकेट और श्री माधव कृष्ण ने किया ।
आइए अब जानते हैं रामधारी सिंह दिनकर की संक्षिप्त जीवनी …
…



दिनकर हिंदी साहित्य के एक ऐसे नक्षत्र हैं जिनकी चमक आज भी साहित्य जगत को आलोकित कर रही है। उन्हें ‘राष्ट्रकवि’ के रूप में जाना जाता है, और उनकी रचनाओं में राष्ट्रीयता, वीर रस और सामाजिक चेतना का ओजपूर्ण प्रवाह मिलता है। आइए, उनके बारे में विस्तार से जानते हैं:
जीवन परिचय:
जन्म: 23 सितंबर, 1908
जन्मस्थान: सिमरिया, मुंगेर जिला, बिहार (तत्कालीन बंगाल प्रेसीडेंसी)
पिता: रवि सिंह
माता: मनरूप देवी
शिक्षा: उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से इतिहास, दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।
कार्यक्षेत्र: उन्होंने एक शिक्षक के रूप में अपना करियर शुरू किया। इसके बाद वे विभिन्न सरकारी पदों पर रहे, जिनमें सब-रजिस्ट्रार, प्रचार विभाग के उपनिदेशक, बिहार सरकार के सूचना विभाग के निदेशक और भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति जैसे महत्वपूर्ण पद शामिल हैं। वे 1952 में भारतीय संसद के ऊपरी सदन, राज्यसभा के सदस्य भी मनोनीत हुए।
वैवाहिक जीवन: उनका विवाह रमा देवी से हुआ था।
निधन: 24 अप्रैल, 1974, मद्रास (चेन्नई)
साहित्यिक जीवन:
दिनकर जी ने अपनी लेखनी के माध्यम से हिंदी साहित्य को समृद्ध किया। उनकी कविताओं में एक विशेष ओज और विद्रोह का स्वर झलकता है, जो युवाओं को प्रेरित करता है। उनकी रचनाओं में राष्ट्रीयता, सामाजिक न्याय, वीरता, प्रेम और प्रकृति जैसे विविध विषय मिलते हैं।
प्रमुख रचनाएँ:
दिनकर जी ने गद्य और पद्य दोनों ही विधाओं में लेखन किया, लेकिन उनकी पहचान मुख्य रूप से एक कवि के रूप में है। उनकी कुछ प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं:
काव्य संग्रह:
रेणुका (1935): यह उनकी प्रारंभिक रचनाओं में से एक है, जिसमें राष्ट्रीय भावना और प्रेम के गीत हैं।
हुंकार (1938): इस संग्रह में उनकी राष्ट्रीय चेतना और विद्रोह का स्वर अधिक मुखर है।
रसवंती (1940): यह श्रृंगार रस की कविताओं का संग्रह है।
कुरुक्षेत्र (1946): यह उनका एक प्रसिद्ध प्रबंध काव्य है, जो महाभारत के युद्ध के दार्शनिक और नैतिक पहलुओं पर प्रकाश डालता है।
रश्मिरथी (1952): यह उनका सर्वाधिक लोकप्रिय खंडकाव्य है, जो कर्ण के उदात्त चरित्र को प्रस्तुत करता है।
नीलकुसुम (1954): यह प्रकृति और प्रेम से संबंधित कविताओं का संग्रह है।
उर्वशी (1961): यह एक गीति नाट्य है, जो प्रेम, सौंदर्य और मानवीय भावनाओं की गहराई को दर्शाता है। इस कृति के लिए उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला।
परशुराम की प्रतीक्षा (1963): यह भारत-चीन युद्ध की पृष्ठभूमि में लिखी गई राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत कविता है।
आत्मा की आँखें (1964): यह उनकी चिंतनशील कविताओं का संग्रह है।
दिनकर की सूक्तियाँ (1964)
सीपी और शंख (1965)
नए सुभाषित (1957)
गद्य रचनाएँ:
मिट्टी की ओर (1946): यह भारतीय संस्कृति और ग्रामीण जीवन पर उनके विचारों का संग्रह है।
संस्कृति के चार अध्याय (1956): यह भारतीय संस्कृति और इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्ययन है, जिसके लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
काव्य की भूमिका (1958): यह हिंदी कविता के सिद्धांतों और विकास पर उनका चिंतन है।
पंत प्रसाद और मैथिलीशरण (1958): यह तीन प्रमुख कवियों पर उनकी आलोचनात्मक कृति है।
हमारी सांस्कृतिक एकता (1958)
साहित्यमुखी (1968)
राष्ट्रभाषा और राष्ट्रीय एकता (1955)
दिनकर की डायरी
साहित्यिक विशेषताएँ:
राष्ट्रीयता और देशभक्ति: दिनकर की कविताओं में राष्ट्रीय भावना का प्रबल स्वर मिलता है। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्र निर्माण के समय लोगों को प्रेरित करने वाली रचनाएँ लिखीं।
वीर रस: उनकी कविताओं में वीर रस का अद्भुत संचार होता है, जो पाठकों में उत्साह और जोश भर देता है। ‘रश्मिरथी’ और ‘परशुराम की प्रतीक्षा’ इसके उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
सामाजिक चेतना: दिनकर ने अपनी रचनाओं में सामाजिक अन्याय, असमानता और रूढ़ियों पर प्रहार किया। उन्होंने दलितों और पीड़ितों के प्रति अपनी सहानुभूति व्यक्त की।
ओजपूर्ण भाषा: उनकी भाषा में एक विशेष ओज और प्रवाह होता है, जो उनकी कविताओं को प्रभावशाली बनाता है।
मानवीय भावनाएँ: उन्होंने प्रेम, सौंदर्य, करुणा और मानवीय संबंधों जैसे विषयों को भी अपनी कविताओं में कुशलता से चित्रित किया है। ‘उर्वशी’ इसका सुंदर उदाहरण है।
भारतीय संस्कृति का चित्रण: उनकी रचनाओं में भारतीय संस्कृति, इतिहास और दर्शन का गहरा ज्ञान झलकता है। ‘संस्कृति के चार अध्याय’ इसका प्रमाण है।
पुरस्कार और सम्मान:
दिनकर जी को उनके साहित्यिक योगदान के लिए अनेक पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा गया:
साहित्य अकादमी पुरस्कार (1959): ‘संस्कृति के चार अध्याय’ के लिए।
पद्म भूषण (1959): भारत सरकार द्वारा।
ज्ञानपीठ पुरस्कार (1972): ‘उर्वशी’ के लिए।
रामधारी सिंह दिनकर हिंदी साहित्य के एक ऐसे कवि थे जिन्होंने अपनी ओजपूर्ण और राष्ट्रीय चेतना से भरी कविताओं के माध्यम से एक पूरे युग को प्रभावित किया। उनकी रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं और हमें राष्ट्र, समाज और मानवीय मूल्यों के प्रति जागरूक करती हैं। उनका योगदान हिंदी साहित्य में हमेशा अविस्मरणीय रहेगा।



