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हरियाणा और जम्मू कश्मीर विधान सभा चुनाव के लिए निर्वांचन आयोग ने डेट अनाउंस किया …जम्मू कश्मीर में 3 चरणों में जबकि हरियाणा में एक चरण में चुनाव संपन्न होंगे …

केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद पहली बार जम्मू कश्मीर में चुनाव

जम्मू कश्मीर में 10 साल बाद विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। ‌
मतदान तीन चरणों में होगा।
पहला 18 सितंबर दूसरा 25 सितंबर और तीसरा 1 अक्टूबर को।
नतीजे 4 अक्टूबर को आएंगे।
जम्मू कश्मीर के इतिहास में यह पहला मौका है जब इतने लंबे समय बाद वहां चुनाव हो रहे हों।
इससे पहले 2014 में विधानसभा चुनाव हुए थे। ‌ जिसमें पीडीपी के मुफ्ती मोहम्मद सईद के साथ मिलकर बीजेपी ने सरकार बनाई थी। मुफ्ती साहब के 2016 में निधन के बाद महबूबा मुफ्ती के साथ भी बीजेपी सरकार में रही लेकिन 2018 में उसने महबूबा मुफ्ती सरकार से समर्थन वापस ले लिया।
उसके बाद वहां राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया।
फिर केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर में कई प्रयोग किए।
2019 में राज्य के दो टुकड़े कर दिए। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख। दोनों को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया था।

अब जम्मू कश्मीर का जो यह चुनाव है वह पूर्ण राज्य का नहीं बल्कि केंद्र शासित प्रदेश का ही हो रहा है।
इस तरह कह सकते हैं कि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर का यह पहला चुनाव।

यहां भाजपा ने अपने हिसाब से राज्य का परिसीमन भी करवा लिया गया है।
पहले जम्मू में 37 सीटें थीं जो बढ़कर 43 हो गई है और कश्मीर में 46 थी जिसमें केवल एक बढ़ाकर वहां 47 की गई है।
कुल 90 सीटों पर विधानसभा चुनाव।
लेकिन यह मत समझिए की सीटें केवल 90 ही हैं। जम्मू कश्मीर की कुल सीटें 114 हैं।

इसमें से 24 पाक अधिकृत कश्मीर में है।
जो हमेशा से हैं। इस बार ही नहीं है और इसके लिए कहा जाता है कि वहां स्थिति अनुकूल होने पर हम वहां चुनाव करवाएंगे।

पहले जम्मू कश्मीर में कुल 111 सीटें हुआ करतीं थीं।
37 जम्मू में 46 कश्मीर में 4 लद्दाख में और 24 पीओके में।
यहां यह आंकड़ा देखना मजेदार है कि जम्मू में आबादी कुल 44% है लेकिन अब सीट यहां 43 कर दी गई है। कश्मीर के लोग और पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस इसका विरोध कर रहे हैं क्योंकि अब कश्मीर की 56% आबादी के पास केवल 47 सीटें हैं।
भाजपा जम्मू की सीटों के जरिए वहां राज्य में सरकार बनाना चाह रही है। कश्मीर में गुलाम नबी आजाद और कुछ दूसरे लोगों के साथ मिलकर या अलग से उनका समर्थन देकर कुछ सीटें जीतना चाहती है। हालांकि अभी लोकसभा चुनाव में वह कश्मीर की किसी सीट पर अपना उम्मीदवार नहीं उतार पाई थी।

जम्मू में भी भाजपा के लिए स्थिति इतनी साजगार नहीं है। वहां कांग्रेस का अच्छा प्रभाव है। लोकसभा में जम्मू की दोनों सीटों पर कांग्रेस बहुत कम वोटो से हारी है।
जम्मू में लगातार बढ़ता आतंकवाद एक बहुत बड़ा मुद्दा बन गया है। आतंकवादी घटनाओं में कई आर्मी ऑफिसरों का शहीद होना एक नई घटना है।
मोदी सरकार ने पहले नोटबंदी के जरिए आतंकवाद पर लगाम लगाने का दावा किया था और फिर 370 हटाकर।
मगर आतंकवाद कम नहीं हुआ।
यह बड़ा मुद्दा है।

जम्मू कश्मीर में अगर इंडिया गठबंधन मिलकर चुनाव लड़ती है तो वहां उसके लिए अच्छी संभावनाएं हो सकती हैं। ‌ लोकसभा में पीडीपी का कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस से समझौता नहीं हो पाया था।
अभी चुनाव से कुछ ही दिन पहले वहां केंद्र सरकार ने उपराज्यपाल की शक्तियों में और इजाफा कर दिया। इसको लेकर भी वहां बहुत विरोध है।
जम्मू कश्मीर की स्थिति करीब करीब दिल्ली जैसी बना दी गई है।

जम्मू कश्मीर में इससे पहले सबसे लंबे समय बाद चुनाव 1996 में हुआ था।
1987 के विधानसभा चुनाव के बाद यह चुनाव हुआ था। 1996 में फारूक अब्दुल्ला की सरकार बनी थी। वह आतंकवाद का सबसे खराब दौर था।
सुप्रीम कोर्ट ने 30 सितंबर तक चुनाव कराने को कहा था। उसके आदेश के पालना में ही यह चुनाव हो रहा है। नहीं तो अभी शायद इसे और टाल दिया जाता।

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