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संपादकीय _नेता प्रतिपक्ष हैं राहुल गांधी …क्या नेता प्रतिपक्ष के साथ इस तरह का व्यवहार सही माना जा सकता है ?

आज जो भी हुआ ,वो लोकतंत्र में कतई सही नहीं कहा जा सकता ...पीएम आएंगे ,जायेंगे ...देश रहना चाहिए ...इसकी सभ्यता रहनी चाहिए

सेना में रैंक होती है। उसी के हिसाब से सब काम होता है। उसे नेता प्रतिपक्ष का रैंक मालूम है।
लेकिन अगर उसे भी मजबूर किया जाएगा तो मैसेज क्या जाएगा?
लाल किले की सारी व्यवस्था सेना ही संभालती है।

सेना में, ब्यूरोक्रेसी में, जुडिशरी में, आम जनता में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को पीछे बिठाने का मैसेज अच्छा नहीं गया।
विदेशी राजनयिकों में तो बहुत ही बुरा गया। डिप्लोमेसी में तो इसे बिल्कुल स्वीकार नहीं किया जाता है।

केवल गोदी मीडिया और भक्तों को खुश करने के लिए यह कृत्य किया गया।

खुद दो को छोड़कर बीजेपी के किसी नेता को भी अच्छा नहीं लगा। वे हमेशा विपक्ष में रहे और पर्याप्त सम्मान पाते रहे। और भविष्य के लिए इस अपमान की कल्पना ही उन्हें डरा रही है।

राहुल को क्या फर्क पड़ता है वह तो जनता के बीच बैठकर उसी की तरह कार्यक्रम देख सुन लेते हैं। ‌जनता भी खुश हो जाती है कि राहुल उनके बीच बैठे हैं।

फर्क तो पड़ता है देश की प्रतिष्ठा को।
कि दुनिया में मैसेज जाता है कि उसके यहां नेता प्रतिपक्ष को उस पार्टी के नेता को जिसने देश के स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया हो पीछे बैठाया जाता है!

और वहीं से परिवारवाद की बात वे चाहे जितनी कर लें सच यह है कि राहुल उस परिवार के हैं जिसने जब 1984 में भाजपा के दो संसद सदस्य रह गए थे तब भी उसने उन संसद सदस्यों और उनकी पार्टी को पर्याप्त सम्मान दिया।

और हैं वंशज उस परिवार के जिसके दो दो प्रधानमंत्री देश पर शहीद हो गए।

राहुल पर कोई फर्क नहीं पड़ता वह इस मान अपमान से बहुत परे की चीज हैं।

यह छोटी सी खुशी जो दूसरों को अपमानित करके मिलती है अंतरराष्ट्रीय जगत में बहुत छोटी और बहुत बुरी चीज मानी जाती है।

सेडिज्म!
इंफियरटी कांपलेक्स!………………

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