
पटना में शुक्रवार को १७ प्रमुख राजनीतिक दलों की प्रदीर्घ बैठक हुई। इसमें ५ वर्तमान मुख्यमंत्री उतने ही पूर्व मुख्यमंत्री उपस्थित रहे। २०२४ के आम चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ एक बनाम एक टक्कर देकर प्रधानमंत्री मोदी की भाजपा को पराजित करना इस बैठक में तय हुआ। लोकतंत्र के नजरिए से ये खुशखबरी है। इस बैठक पर गृहमंत्री अमित शाह ने अपेक्षा के अनुरूप ही प्रतिक्रिया दी। अमित शाह ने कहा, ‘विपक्षी लोग फोटो के लिए एकत्रित हुए और कितने भी विपक्षी एक साथ आएं लेकिन भाजपा ३०० से ज्यादा सीटें जीतेगी यह तय है।’ श्री शाह की ये ऊपरी तौर पर कुंठा है। देश में ‘फोटोप्रेमी’ कौन है? यह १४० करोड़ जनता प्रतिदिन देखती है। फोटो अथवा लोकप्रियता के आड़े आनेवाले अपने ही नेताओं, मंत्रियों को वैâसे ढकेल कर दूर किया जाता है, यह मोदी ने कई बार दिखा दिया है। भाजपा के तमाम कार्यक्रम जनता अथवा देश के लिए न होकर फोटो के लिए ही होते हैं, इसमें नए सिरे से कहा जाए ऐसा क्या है? रहा सवाल २०२४ में क्या परिणाम आएगा इसका, इस बार का पैâसला ‘ईवीएम’ नहीं करेगी, जनता ही करेगी। ईवीएम घोटाले जैसा संशय आया तो मणिपुर जैसी स्थिति इस बार देश में निर्माण होगी, इतना आक्रोश जनता के मन में भर गया है। विपक्ष के लोग पटना में फोटो खिंचाने के लिए एकत्रित हुए, ये मान भी लिया जाए तो उनसे इतना डरने की वजह क्या है? कल तक भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ‘नड्डा’ आदि लोग ‘अब की बार भाजपा ४०० के पार’ ऐसी घोषणा करते थे। पटना के फोटोसेशन के बाद खुद अमित शाह कह रहे हैं, ‘हम ३०० सीटें जीतेंगे।’ मतलब विरोधियों के एक फोटोसेशन ने ही भाजपा की १०० सीटें कम कर दी और यही विपक्ष की एकता के वङ्कामूठ की ताकत है। भारतीय जनता पार्टी गैस से भरा गुब्बारा है, वह जरा ज्यादा ही फूल गया है। सत्ता-मत्ता और लोकप्रियता के कारण लोगों को भ्रमित किया जा सकता है लेकिन लोगों के मन पर दीर्घकाल तक राज नहीं किया जा सकता है। मोदी-शाह ने जीत का ढोल बजाने के लिए, मतदाताओं पर दबाव डालने के लिए बड़ी संख्या में किराए के लोगों को तैयार किया है। ये किराए के लोग ही उन पर पहला वार करेंगे। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण फिलहाल रूस में दिख रहा है। पुतिन की तरह ही मोदी-शाह भी तानाशाही, सर्व सत्तावाद लाने का प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए उन्हें तमाम राष्ट्रीय तंत्र को कब्जे में लेना है। अपने आस-पास किराए के लोगों को खड़ा कर दिया, उन किराए के लोगों ने देश की संपत्ति बेच दी। आज पुतिन के देश में क्या हो रहा है? पुतिन द्वारा अपनी सुविधा के लिए तैयार किए गए ‘वैगनर ग्रुप’ नामक सेना ने ही पुतिन के खिलाफ बगावत का एलान कर दिया। पुतिन की तानाशाह सरकार के शासन को उलटकर रूस में तख्तापलट करने के लिए पुतिन की ये निजी सेना ही सड़क पर उतर आई। मास्को पर कब्जा जमाने के लिए ये सेना आगे बढ़ रही थी। रूस अर्थात पुतिन ने यूक्रेन पर नृशंस हमला किया। एक देश को तबाह कर दिया। जीत का मद तब पुतिन पर चढ़ा था। विश्वयुद्ध की घोषणा की परंतु उनकी अपनी ही कुर्सी के नीचे लगे बम की वात सुलगने लगी, इसकी भनक ही पुतिन जैसे तानाशाह को नहीं लगी। ‘पुतिन की सत्ता का तख्ता पलट किए बगैर शांत नहीं बैठेंगे। रूस को नया राष्ट्रपति मिलेगा,’ ऐसी शपथ वैगनर ग्रुप के प्रमुख प्रिगोजिन ने पहले ली थी। प्रिगोजिन ने घोषणा की थी कि पुतिन देश को बर्बाद करने का प्रयास कर रहे हैं। पुतिन द्वारा गलत मार्ग चुने जाने के कारण देश में अराजकता बढ़ी है। हमारे पास हजारों लोगों की फौज है। हम पुतिन को हटाएंगे ही! पुतिन खुद को शक्तिशाली मानते थे। देश के तमाम तंत्र के मालिक ही बनकर वे राज कर रहे थे। विरोधियों का उन्होंने सीधे कांटा ही निकाल दिया। सीधे मार डाला अथवा जेल में डाल दिया। रूस की जनता महंगाई, बेरोजगारी, आंतरिक कलह के कारण मृत्युतुल्य यातना भोग रही है और इस दौरान राष्ट्रपति पुतिन युद्ध, मौज-मस्ती में व्यस्त थे। नतीजतन अंतत: उनकी ही सेना उनके खिलाफ सड़क पर उतर आई। रूस में विगत कई वर्षों में हुआ चुनाव सिर्फ छलावा था। पुतिन के लोग गड़बड़ी करके चुनाव जीतते रहे और उन्होंने संसद पर कब्जा हासिल किया। अब हमें किसी का डर नहीं है और परमेश्वर से अमृत ही प्राप्त कर लिए जाने के कारण अमर हो गए हैं, ऐसी मदहोशी में रहने के दौरान पुतिन के खिलाफ बगावत हुई है। पुतिन का कहना यह है कि वैगनर संगठन ने पीठ में खंजर घोंपा, देशद्रोह किया। पुतिन के मुंह से ये बातें शोभा नहीं देती। तानाशाह अपनी सुविधा के अनुसार देशद्रोह की व्याख्या बदलता रहता है। हिंदुस्थान में भी यही चल रहा है और लोगों के मन में क्रांति की भावना निर्माण हो रही है। भाजपा ने सत्ता को बरकरार रखने के लिए कई बिकाऊ लोगों को अर्थात घाती लोगों को अपने इर्द-गिर्द रक्षक बनाकर खड़ा किया है। कल यही लोग सबसे पहले मोदी-शाह की पीठ पर वार करेंगे और सड़क पर उतरेंगे। पुतिन के मामले में यही हुआ। अमेरिका सहित पूरी दुनिया ने पुतिन से युद्ध करके यूक्रेन को बर्बाद न करें, ऐसा आह्वान किया। लेकिन मस्त और मदहोश पुतिन ने सुना नहीं। इसलिए दुनिया में और भी ‘चालाक’ लोग भी हैं और वे भी तानाशाह के गढ़ में सेंध लगा सकते हैं। यह अब पुतिन के खिलाफ बगावत से साफ हो गया है। वैगनर ग्रुप की सशस्त्र सेना को रौंद डालेंगे, ऐसा ताव पुतिन ने दिखाया लेकिन उनसे हुआ नहीं। अंतत: बिचौलिए के माध्यम से वैगनर ग्रुप के अध्यक्ष का मन बदलकर उसे बेलारूस में भेजा। मतलब वैगनर ग्रुप के समक्ष पीछे श्रीमान पुतिन हटे। पुतिन को भी झटका दिया जा सकता है और तानाशाह के मन में हड़कंप मच जाता है। ये वैगनर की बगावत के रूप में दुनिया ने देखा। अर्थात किसी भी तानाशाह के मन में ऐसी दहशत कभी न कभी निर्माण होती है। पुतिन हो या मोदी, उन्हें बगावत का सामना करना ही पड़ता है। हिंदुस्थान की सत्ता अहिंसक ‘वैगनर’ मार्ग से ही उल्टी जाएगी और वह मार्ग मतपेटी है। मोदी, बायडेन से मिलने वॉशिंगटन गए थे। बेहद गलत अंग्रेजी भाषण देकर उन्होंने खुद का उपहास बनाया, यह अट्ठहास सिर्फ कम क्षमतावाला व्यक्ति ही कर सकता है। ‘व्हाइट हाउस’ की पत्रकार परिषद में देश के लोकतंत्र, संविधान, अल्पसंख्यकों पर हमला आदि पूछे गए सवालों से प्रधानमंत्री मोदी के पांव के नीचे से जमीन ही खिसक गई,यह साफ नजर आया। इसलिए वॉशिंगटन का उनका फोटोसेशन फीका रहा। उस पर पटना में मोदी की सत्ता को चुनौती देनेवाला लोकतंत्र रक्षक ‘वैगनर ग्रुप’ एक साथ आया। यह ग्रुप किराए का नहीं है, यह महत्वपूर्ण है। पुतिन की तरह ही मोदी को भी जाना होगा लेकिन लोकतांत्रिक मार्ग से। पटना में ‘वैगनर ग्रुप’ ने यही संकेत दिए हैं!